रत्ना और अश्विन, दो ऐसे लोग जो मन को गहरे छू जाते हैं ... जिनके संवादों के बीच उनकी ख़ामोशी को बहुत देर तक सुनते रहते हैं हम ... कितने ही दृश्य ऐसे होते हैं जिनमें शब्द नहीं होते ... लेकिन कहीं आँखों का सूनापन और कहीं आँखों की चमक कह देती है बहुत कुछ ही ... ख़ामोशी से गुज़रते लम्हों में बैकग्राउंड में बजती धीमी धुन, उस ख़ामोश लम्हे तक खींच कर ले जाती है हमें भी ...
सबका असर ये होता है कि, गुज़र जाने के बाद भी कहानी में अटके रह जाते हैं हम ... या कि यूँ कहें कि किसी कोमल प्रेम कविता की तरह हमारे ज़हन में अटक के रह जाती है ये ... वो कविता जिसे हम बार बार पढ़ सकते हैं, महसूस कर सकते हैं उसकी कोमलता ... हाँ ! पढ़ना ही है, हौले-हौले चलते हर एक दृश्य को पढ़ने जैसा ही देखना है ...!
इस फ़िल्म के लिये कहने पर आएँ तो बहुत कुछ है, लेकिन अभी बस इतना ही -
"विवेक और तिलोत्तमा के शानदार अभिनय से सजी एक बेहद ख़ूबसूरत फ़िल्म"
#Must_ watch_film
#IsLoveInough?Sir ❤