यह फिल्म बहुत कुछ कहती और पूछती है। समाज का रवैया स्त्री के प्रति कभी बदला नहीं। सामाजिक रूढ़ियों के चलते उसने बहुत कुछ गंवाया। लेकिन फिल्म में स्त्री ही स्त्री से कई सवाल करती और जवाब तलाशती है। साशा जैसी हुनरमंद कलाकार जाने अनजाने अर्शी को जिंदगी की राह दिखा देती है। फिल्म एकबारगी में मुकम्मल देखी। सभी का काम अच्छा था। खासकर कीर्ति कुल्हारी और निवेदिता भट्टाचार्य ने अपने पात्रों को भरपूर जिया।